क्यों विलुप्त हो रही है रामलीला?

हिन्दू धर्म (Hindu religion) में नवरात्रि (Navratri) का त्योहार बहुत महत्व रखता है। आपको बता दें कि साल में चार नवरात्रि पड़ती हैं जिसमें से दो गुप्त नवरात्रि, एक चैत्र नवरात्रि और एक शारदीय नवरात्रि (Sharadiya Navratri) होती है। अश्विन मास में शारदीय नवरात्रि के प्रारंभ के साथ ही जहाँ नौ दिनों तक घर-घर में दुर्गा माता का पूजन किया जाता है वहीं नौ दिन चलने वाली रामलीला के मंचन का सिलसिला भी शुरू हो जाता है। रामलीला प्रभु श्रीराम के चरित पर परंपरागत रूप से खेला जाने वाला एक नाटक है जो मुख्य तौर पर उत्तर भारत में होती है।

रामलीला का विकास मुख्य तौर पर उत्तर भारत में हुआ था जिसके प्रमाण करीबन ग्यारहवीं शताब्दी में मिलते हैं। कहा जाता है कि पिछले समय में रामलीला महर्षि वाल्मीकि के महाकाव्य ‘रामायण’ की पौराणिक कथाओं पर की जाती थी, परंतु आज के समय में हम जिस रामलीला का मंचन देखते हैं उसकी पटकथा ‘रामचरितमानस’ की कहानियों पर आधारित है। जिसे गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा था। कहा जाता है कि पहली बार रामलीला का मंचन गोस्वामी तुलसीदास के शिष्यों द्वारा 16वीं सदी में किया गया था। उस समय काशी के राजा ने गोस्वामी तुलसीदास के रामचरितमानस को पूर्ण करने के बाद रामनगर में रामलीला कराने का संकल्प लिया था। कहा जाता है कि उसी समय से देशभर में रामलीला के नाटक का प्रचलन शुरू हो गया।

रामलीला में भगवान श्रीराम के जीवन की प्रमुख घटनाओं को विभिन्न कलाकारों द्वारा दर्शाया जाता है। इस नाटक में विभिन्न कलाकार रामजन्म से लेकर उनके वनवास जाने, सीता हरण, भरत मिलाप और रावण-वध जैसी सारी घटनाओं का मंचन करते हैं। इसके बाद दशमी वाले दिन रावण-वध होता है, इस दिन रावण सहित मेघनाद तथा कुंभकरण का भी पुतला जलाकर दशहरा पर मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार विजयादशमी या दशहरा का पर्व अधर्म पर धर्म की और बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है।

आपको बता दें कि जब भारत डिजिटल इंडिया नहीं हुआ था तब मनोरंजन का साधन नाच, गम्मत, रामलीला, रासलीला हुआ करती थी। ग्रामीण क्षेत्रों में आज कुछ जगह नाचा तो होता है लेकिन रामलीला विलुप्त होती जा रही है। इसके कारण कलाकारों के सामने भूखों मरने की स्थिति है। फिर भी कुछ लोग अपने जोश और जुनून के कारण विलुप्त होती नाट्यकला को आज भी जीवित रखे हुए हैं।

रामलीला 5 को होगा समापन

कार्यक्रम के पहले दिन 26 सितंबर को मुनि आगमन, ताड़का वध, 27 सितंबर को धनुष यज्ञ, 28 सितंबर को लक्ष्मण परसराम संवाद, सीता विवाह, 29 सितंबर को सुर्पनखा नक्की, सीताहरण, 30 सितंबर को राम सुग्रीव मित्रता, बालिवध, 1 अक्टूबर को लंकादहन, अंगद रावण संवाद, 2 अक्टूबर को लक्ष्मण शक्ति मेघनाथ वध व 3 अक्टूबर को कुंभकरण वध की प्रस्तुति की गई है। 4 अक्टूबर को अहीरावण वध व 5 अक्टूबर को दशहरा के दिन रावण वध, रामराज्य अभिषेक एवं राज तिलक कर कार्यक्रम का समापन किया जाएगा।

दिल्ली में रामलीलाओं का बहुत पुराना इतिहास है। दिल्ली में, सबसे पहली रामलीला बहादुरशाह ज़फर के समय पुरानी दिल्ली के रामलीला मैदान में हुई थी। लवकुश रामलीला कमेटी, अशोक विहार रामलीला कमेटी आदि दिल्ली की प्राचीन रामलीलाओं में से हैं। राम भारतीय कला केन्द्र द्वारा रामलीला का मंचन तीन घंटों में दर्शाया जाता है। यहाँ की रामलीला में पात्रों की वेशभूषा दर्शनीय है। इनके अतिरिक्त दिलशाद गार्डन रामलीला, दिल्ली छावनी की रघुनन्दन लीला समिति, मयूर यूथ क्लब मयूर विहार-1 रामलीला, सूरजमल विहार रामलीला आदि भी दिल्ली की चर्चित रामलीलाओं में से हैं।