करवा चौथ (Karva Chauth) 1 नंबर यानी आज है। आज के दिन सभी माताएं बहनें अपने पति की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य के लिए करवाचौथ का कठोर निर्जला व्रत करती हैं। अथर्ववेदाचार्य पंडित देवानंद जी ने बताया कि पौराणिक मान्यताओं और शास्त्रों के अनुसार, चंद्रपूजन के दौरान व्रतियों को माता करवा की व्रत कथा जरूर सुननी चाहिए, तभी आपका व्रत पूरा माना जाएगा और आपको मनचाहा फल मिलेगा।
मां करवा की कहानी
एक ख्याती प्राप्त साहुकार था। जिसके सात बेटे और एक बेटी थी। सात भाइयों की अकेली बहन करवा सब की लाडली थी। सभी भाई अपनी बहन को बहुत स्नेह करते थे। साथ में बैठाकर भोजन कराते थे। एक दिन साहुकार की सभी बहुएँ और बेटी कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करवाचौथ का व्रत करती हैं। रात होते ही सभी भाई खाना खाने बैठते हैं। तब छोटे भाई ने बहन से खाना खाने को कहा तो बहन ने बताया कि आज मैं खाना चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही खाऊंगी, लेकिन सुबह से बिन अन्न जल के होने वाले इस व्रत निर्जला व्रत में बहन की हालत देख छोटे भाई से रहा नहीं गया और उसने एक तरकीब निकाली और दूर पीपल के पेड़ में एक दीपक जला कर चलनी की ओट में रख दिया जो चतुर्थी के चांद की तरह ही लगता है। उसे देखकर करवा अर्घ्य देकर खाना खाने लगती है। तभी खाने के पहले टुकड़े को खाते ही उसे छींक आती है। दुसरे टुकड़े में बाल आ जाता है और तीसरा टुकड़ा जैसे ही खाती है तो उसके पति की मृत्यु की ख़बर उसे प्राप्त होती है और वह शोक में डूब जाती है।