उत्तराखंड के इस गाँव में 373 सालों से नहीं खेली गई होली

होली (Holi 2023) का त्यौहार नजदीक है। इस बार होली 8 मार्च को मनाई जाएगी। वहीं, उत्तराखंड (Uttarakhand) के साथ-साथ भारत में भी हर कोई होलिका दहन की तैयारियों में जुट गया है। सभी शहरों के बाजार गुलाल, पिचकारी, रंग बिरंगे गुब्बारों और लजीज पापड़ व अन्य पकवानों से सजे नजर आ रहे हैं। क्या आपको पता है कि उत्तराखंड के तीन गांव ऐसे हैं, जहां कई पीढ़ियों से होली खेली ही नहीं गई है। अब आप इसे अंधविश्वास कहें या अपनी कुलदेवी माँ त्रिपुरा सुंदरी के प्रति ग्रामीणों की आस्था, लेकिन सच्चाई यह है कि इन तीन गांवों के लोग 15 पीढ़ियों से अपनी आस्था पर कायम हैं।

आपको बता दें कि उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले (Rudraprayag District) के अगस्त्यमुनि प्रखंड के तल्ला नागपुर पट्टी के क्वीली, कुरझण और जौंदला गांव इस उत्साह और हलचल से कोसों दूर हैं। यहां न कोई होल्यार (होली खेलने वाले) आता है और न गँव वाले एक-दूसरे को रंग लगाते हैं। बता दें कि गाँव वालों ने होली खेलना सिर्फ कुछ एक सालों से नहीं छोड़ा है बल्कि पूरे 373 सालों से यहां के ग्रामीणों ने होली नहीं मनाई है। होली न मनाने के पीछे पसंद कारण नहीं है बल्कि लोक मान्यता और विश्वास है। जिसे पीढ़ी दर पीढ़ी सभी ने संजोए रखा है।

आपको बता दें कि रुद्रप्रयाग जिला मुख्यालय से करीब 20 किमी दूर बसे क्वीली, कुरझण और जौंदला के ग्रामीण मानते हैं कि जम्मू-कश्मीर से कुछ पुरोहित परिवार अपने यजमान और काश्तकारों के साथ करीब 372 साल पहले यहाँ आकर बस गए थे। ये लोग, तब अपनी ईष्टदेवी देवी माँ त्रिपुरा सुंदरी की मूर्ति भी लाए थे और इस देवी के साथ होली न खेलने की मान्यता जुड़ी हुई है।