‘कॉफ़ी और चॉकलेट’ बढ़ा सकते हैं ‘मलेरिया’ का जोखिम

कॉफ़ी और चॉकलेट (Coffee and Chocolate) के लगभग सभी दीवाने होते हैं। एक नए अध्ययन के अनुसार कॉफ़ी और चॉकलेट का सेवन मलेरिया (Malaria) जैसी घातक बीमारी को बढ़ावा दे सकता है। आप कहेंगे कैसे, तो चलिए हम आपको बताते हैं। कॉफ़ी और कोको (चॉकलेट) जैसे उत्पादों की खेती के लिए दुनिया के कई उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में जंगलों को काटा (Cutting of Forests) जाता है क्योंकि इसके लिए बड़ी मात्रा में भूमि की आवश्यकता होती है। एक शोध से पता चला है कि वनों की कटाई (Deforestation) से मलेरिया के लिए जिम्मेदार एनोफिलीज मच्छरों (Anopheles mosquitoes) को पनपने के लिए उचित जगह मिल सकती है। पेड़ों के कटने से पानी का अवशोषण कम हो जाता है और खड़ा हुआ पानी मच्छरों के प्रजनन को बढ़ावा देता है। ‘नेचर कम्युनिकेशंस’ (Nature Communications) नामक पत्रिका में छपी रिपोर्ट में कहा गया है कि सिडनी विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने आकलन किया है कि व्यापक रूप से कॉफ़ी और कोको (चॉकलेट) जैसे उत्पादों की मांग के लिए वनों की कटाई से संचालित मलेरिया जोखिम को कितना जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। वनों की कटाई से मलेरिया का खतरा 20 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। ‘स्कूल ऑफ फिजिक्स’ (School of Physics) में एकीकृत स्थिरता विश्लेषण केंद्र की सह-लेखक डॉ. अरुणिमा मलिक (Dr. Arunima Malik) ने एक बयान में कहा, “यह अध्ययन सबसे पहले बढ़ते वनों की कटाई में कॉफ़ी और कोको (चॉकलेट) जैसे उत्पादों की भूमिका का आकलन करने के लिए है, जिसके बदले में हमें मिलता है मलेरिया का जोखिम”। डॉ. मलिक ने कहा, “क्या इसका मतलब यह है कि कॉफ़ी और चॉकलेट को मेनू से पूरी तरह से हटा दिया जाना चाहिए”? शोधकर्ताओं का कहना है कि यह जरूरी नहीं है। हालांकि, उनका तर्क है कि आर्थिक रूप से अधिक विकसित देशों में उपभोक्ताओं को “हमारे उपभोग के प्रति अधिक विचारशील” होना चाहिए। एक साधारण उदाहरण के रूप में, कई ब्रांड कॉफ़ी या चॉकलेट ‘रेनफॉरेस्ट एलायंस’ (Rain Forest Alliance) जैसे संगठनों द्वारा प्रमाणित हैं, जो यह दर्शाता है कि वे पर्यावरण, सामाजिक और आर्थिक रूप से टिकाऊ हैं। नीति निर्माताओं और शोधकर्ताओं को यह ध्यान रखना चाहिए कि कॉफ़ी या चॉकलेट की खपत, मलेरिया को कम करने के दुनिया के प्रयासों को कैसे प्रभावित कर सकती है। हमें अपनी खपत और खरीद के प्रति अधिक सचेत रहने की आवश्यकता है, और वनों की कटाई से जुड़े स्रोतों को खरीदने से बचें और विकासशील देशों में स्थायी भूमि स्वामित्व का समर्थन करें।