
भारत में हर दिन एक त्यौहार (festival) जैसा होता है। यहाँ किसी न किसी क्षेत्र का कोई न कोई त्यौहार हर दिन होता है। त्यौहार अलावा भारत में व्रत का भी अपना एक अलग महत्व है। अपने रिश्तों को बनाए रखने के लिए पुराणों में कईं सारे व्रतों का उल्लेख किया गया है। चाहे बात करवा चौथ की हो या फिर हरितालिका तीज की, ऐसे कईं सारे और व्रत भी होते है जो महिलाएँ और पुरुषों द्वारा रखे जाते हैं। इन्हीं व्रतों में से एक हैं, अहोई अष्टमी का व्रत। अहोई अष्टमी (Ahoi Ashtami) का व्रत हर साल कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। यह व्रत औरतों द्वारा इस साल 17 अक्टूबर 2022, दिन गुरुवार को रखा जाएगा। इस दिन माताएँ अपने बेटे की भलाई के लिए दिन भर उपवास रखती हैं। आइए आपको बताते है इस त्यौहार के बारे में…
अहोई अष्टमी की कहानी…
प्राचीन काल में किसी नगर में एक साहूकार रहता था। उसके सात लड़के थे। दीपावली से पहले साहूकार की स्त्री घर की लीपापोती हेतु मिट्टी लेने खदान में गई और कुदाल से मिट्टी खोदने लगी। दैवयोग से उसी जगह एक सेह की मांद थी। सहसा उस स्त्री के हाथ से कुदाल बच्चे को लग गई जिससे सेह का बच्चा तत्काल मर गया। अपने हाथ से हुई हत्या को लेकर साहूकार की पत्नी को बहुत दु:ख हुआ परन्तु अब क्या हो सकता था! वह शोकाकुल पश्चाताप करती हुई अपने घर लौट आई। कुछ दिनों बाद उसका बेटे का निधन हो गया। फिर अकस्मात् दूसरा, तीसरा और इस प्रकार वर्ष भर में उसके सभी बेटे मर गए। महिला अत्यंत व्यथित रहने लगी। एक दिन उसने अपने आस-पड़ोस की महिलाओं को विलाप करते हुए बताया कि उसने जानबूझ कर कभी कोई पाप नहीं किया। हाँ, एक बार खदान में मिट्टी खोदते हुए अंजाने में उसके हाथों एक सेह के बच्चे की हत्या अवश्य हुई है और तत्पश्चात उसके सातों बेटों की मृत्यु हो गई।
यह सुनकर पास-पड़ोस की वृद्ध औरतों ने साहूकार की पत्नी को दिलासा देते हुए कहा कि यह बात बताकर तुमने जो पश्चाताप किया है उससे तुम्हारा आधा पाप नष्ट हो गया है। तुम उसी अष्टमी को भगवती माता की शरण लेकर सेह और सेह के बच्चों का चित्र बनाकर उनकी अराधना करो और क्षमा-याचना करो। ईश्वर की कृपा से तुम्हारा पाप धुल जाएगा।
साहूकार की पत्नी ने वृद्ध महिलाओं की बात मानकर कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को उपवास व पूजा-याचना की। वह हर वर्ष नियमित रूप से ऐसा करने लगी। तत्पश्चात् उसे सात पुत्र रत्नों की प्राप्ती हुई। तभी से अहोई व्रत की परम्परा प्रचलित हो गई।
क्यों रखते है अहोई अष्टमी का व्रत?
अहोई अष्टमी के दिन माँ अपने बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए यह उपवास रखती है। शाम को आसमान में तारों को देखकर ही उपवास खोला जाता है। हालांकि, कहीं कहीं पर चंद्रमा को देखकर उपवास तोड़ने का रिवाज है। अहोई अष्टमी के दिन चंद्रमा देरी से दिखाई देता है, इसलिए इसका अनुसरण करना थोड़ा मुश्किल हो सकता है। इस दिन माता अहोई यानी देवी पार्वती की पूजा की जाती है। महिलाएँ इस दिन माता पार्वती से अपनी संतान की रक्षा और उनकी दीर्घायु की कामना करती है। जिन लोगों को संतान का सुख प्राप्त नहीं हुआ है, उनके लिए भी यह व्रत विशेष हैं। जिनकी संतान दीर्घायु न होती हो उनके लिए भी ये व्रत शुभकारी होता है। इस दिन माता पार्वती की विशेष पूजा करने से संतान प्राप्ति और कल्याण मिलता है। इस दिन उपवास आयुकारक और सौभाग्यकारक होता है।
उत्तर भारत में अहोई अष्टमी का व्रत काफी महत्वपूर्ण माना गया है। यहाँ अहोई अष्टमी का दिन अहोई आठें के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि यह व्रत अष्टमी तिथि, जो कि माह का आठवाँ दिन होता है। इस उपवास को करना भी बहुत कठिन माना गया है। इस दिन महिला पूरे दिन बिना अन्न-जल ग्रहण किए, उपवास करती है, और रात को तारे दिखने के बाद ही उपवास खोलती है। परंपरागत रूप में यह व्रत केवल पुत्रों के लिए ही रखा जाता था, लेकिन अब इसे महिलाएँ अपनी सभी संतानों के कल्याण के लिए रखती है। इस दिन महिलाएँ उत्साह के साथ अहोई माता की पूजा करती है तथा अपनी संतानों की दीर्घ, स्वस्थ्य एवं मंगलमय जीवन के लिए प्रार्थना करती हैं। इसके अलावा जो महिलाएं किसी कारणवश गर्भधारण नहीं कर पा रही है, या फिर किसी समस्या के चलते गर्भपात हो गया हो, उन्हें पुत्र प्राप्ति के लिए अहोई माता व्रत करना चाहिए।
अहोई अष्टमी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान कर लेना चाहिए। इसके दिन बाद दिनभर बिना कुछ खाए उपवास का पालन करना चाहिए। इसकी पूजा की तैयारी सूर्यास्त से पहले ही संपन्न की जाती है। इस प्रक्रिया में सबसे पहले दीवार पर अहोई माता का फोटो लगाया जाता है। अहोई माता का चित्र अष्ट कोष्टक होगा, तो बेहतर रहेगा। उसमें साही (पर्क्यूपाइन) या अथवा उसके बच्चे का चित्र में अंकित करना चाहिए। उसके बाद लकड़ी की एक चौकी सजाना चाहिए, और माता के चित्र की बायी तरफ पवित्र जल से भरा हुए कलश रखा जाना चाहिए। कलश पर स्वस्तिक का चिह्न बनाकर मोली अवश्य बांध दें। इसके बाद दीपक अगरबत्ती आदि लगाकर माता को पूरी, हलवा तथा पुआ युक्त भोजन किया जाना चाहिए। इस भोजन को वायन भी कहा जाता है। इसके अलावा अनाज जैसे ज्वार अथवा कच्चा भोजन (सीधा) भी मां को पूजा में अर्पित किया जाना चाहिए। इसके बाद परिवार की सबसे बड़ी महिला सभी महिलाओं को इस व्रत की कथा का वाचन करना चाहिए। कथा सुनते समय याद रखें कि सभी महिलाएँ अपने हाथ में अनाज के सात दाने रख लें। इसके बाद पूजा के अंत में अहोई अष्टमी आरती की जाती है। कुछ समुदायों में चाँदी की अहोई माता बनाई व पूजी जाती है। इसे स्याऊ भी कहते हैं। पूजा के बाद इसे धागे में गूंथ कर गले में माला की तरह पहना जाता है। पूजा सम्पन्न होने के बाद महिलाएँ पवित्र कलश में से चंद्रमा अथवा तारों को अर्घ्य देती हैं, और उनके दर्शन के बाद ही अहोई माता का व्रत संपन्न होता है।
अहोई अष्टमी के दिन कई लोग चांदी की अहोई बनाकर पूजा करते है, जिसे बोलचाल की भाषा में स्याऊ कहते है। आप चांदी के दो मोती लेकर एक धागे में अहोई और दोनों चांदी के दानें डाल लें। इसके बाद इसकी माता अहोई के सामने रखकर रोली, चावल और दूध से पूजा करें। अहोई माता की कथा सुनने के बाद इस माला को अपने गले में पहनें। इसके बाद चंद्रमा या तारों को जल चढ़ाकर भोजन कर व्रत खोलें।