बीटीसी का सत्र दो साल पिछड़ने के बाद सरकार अब एक सत्र शून्य करने की तैयारी में है। कॉलेज सरकार के इस फैसले से नाराज हैं। कॉलेज प्रबंधकों का कहना है वो शिक्षा मंत्री से मिलकर सत्र शून्य किए बिना पढ़ाई नियमित करने का सुझाव देंगे। अगर सुझाव नहीं सुना गया तो कोर्ट जाएंगे।
बीटीसी का 2013 का सत्र अभी चल रहा है। अब तक उस सत्र की परीक्षाएं नहीं हुई हैं। दरअसल, जिला शिक्षा प्रशिक्षण संस्थानों(डायट) में और निजी कॉलेजों में बीटीसी की पढ़ाई होती है। निजी कॉलेजों को भी मेरिट से छात्रों का आवंटन डायट ही करते हैं। डायट मेरिट के अनुसार साल के अंत तक छात्रों का आवंटन कर पाते हैं। उसके बाद पढ़ाई और परीक्षाओं में देरी होती है। इसी वजह से सत्र करीब दो साल पिछड़ गया।
अब खुद शिक्षा मंत्री ने बेसिक शिक्षा विभाग से प्रस्ताव मांगा है कि 2014 का सत्र शून्य कर दिया जाए ताकि पढ़ाई नियमित हो सके। अब सीधे 2015 के सत्र में दाखिले का प्रस्ताव बनाने को कहा गया है। कॉलेज प्रबंधकों का कहना है कि सरकार खुद ही हमें छात्र नहीं दे पाई। परीक्षाएं समय पर नहीं करा पाई। जिसका खामियाजा छात्र भुगतेंगे। छात्र दो साल लेट पढ़ाई पूरी कर पाएंगे इस बीच में जो नौकरियां निकलीं उससे वे वंचित हुए।
साथ ही कॉलेजों का भी नुकसान हुआ क्योंकि वे तो शिक्षकों और कर्मचारियों को लगतार वेतन दे ही रहे हैं। अब 2014 का सत्र शून्य किया जाएगा तो वह खर्च कहां से पूरा किया जाएगा। कॉलेजों का यह भी सुझाव है कि शून्य करने की बजाय सालाना परीक्षाएं छह-छह महीने में ही करा ली जाएं। इस दौरान उन्हें 2014 और 2015 के छात्र आवंटित कर दिए जाएं।
सत्र शून्य करने से बड़ी नाकामी किसी सरकार की नहीं हो सकती। दाखिले और परीक्षाओं का जिम्मा खुद सरकार ने ही ले रखा था। कॉलेज तो लगातार पढ़ाई करा ही रहे हैं। हम इस मुद्दे पर शिक्षा मंत्री से ही मिलकर अपील करेंगे कि सत्र शून्य न किया जाए। उसके बाद भी बात नहीं बनी तो कॉलेज प्रबंधक कोर्ट भी जाएंगे।