बिटिया बनी माँ की परछाई

तृप्ति पाहवा को बचपन में पढ़ने से ज्यादा चित्रकारी करना अच्छा लगता था। कूची और रंगों के लगाव ने उन्हें एक चित्रकार बना दिया। कलाकार होने के साथ-साथ वे एक कला शिक्षक भी हैं। उनके छात्रों में 14 साल से लेकर 55 साल तक की महिलाएँ शामिल हैं। यही नहीं, कला-उपचार के जरिए वे कई युवतियों की जिंदगी में दोबारा खुशियां भी लेकर आई हैं। वे एक मोटिवेटर तो नहीं हैं, बल्कि कला सिखाते-सिखाते लोगों के जीवन को एक दिशा दे रही हैं। तृप्ति के छात्र दुबई, कनाडा, न्यू जर्सी, गुजरात, मुंबई तक में हैं जिन्हें वे कंप्यूटर के माध्यम से कला  सिखाती हैं। उनका कहना है कि कला को व्यवसाय बनाने से लोग इसलिए हिचकते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि इसमें कमाएंगे क्या। सच तो ये है कि लोगों को मालूम नहीं कि कला बेची भी जा सकती है। लोगों को हम इसके बारे में भी सिखाते हैं। तृप्ति की बेटी गुलप्रीत भी उन्हीं की तरह एक शानदार कलाकार हैं। उन्होंने यह सच कर दिखाया कि बेटी माँ की परछाई ही होती है। यूं तो गुलप्रीत आंतरिक साज-सज्जा विशेषज् (इंटीरियर डिजाइनर) बनना चाहती हैं, लेकिन तृप्ति गर्व से कहती हैं कि उनकी बेटी को वह सब कुछ आता है, जो मैं कर सकती हूँ।