
हिंदी के प्रख्यात साहित्यकार गिरिराज किशोर (Giriraj Kishore) का 83 वर्ष की उम्र में रविवार को कानपुर में देहांत हो गया। जानकारी के मुताबिक, रविवार सुबह अपने आवास पर हृदय-गति रुकने से उनका निधन हुआ। तकरीबन तीन महीने पहले उनकी कूल्हे की हड़डी टूट गई थी, जिसके बाद से वे लगातार बीमार चल रहे थे। उनका जन्म 8 जुलाई 1937 को उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में हुआ था। गिरिराज किशोर एक प्रसिद्ध उपन्यासकार होने के साथ-साथ एक नाटककार और कथाकार भी थे। 1991 में प्रकाशित हुआ उनका उपन्यास ‘ढाई घर’ (Dahi Ghar) काफी प्रसिद्ध हुआ था, जिसके लिए उन्हें 1992 में ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ (Sahitya Academy Award) से सम्मानित किया गया था। गिरिराज किशोर का सुप्रसिद्ध उपन्यास ‘पहला गिरमिटिया’ (Pehla Girmitia) महात्मा गाँधी के अफ्रीका प्रवास पर आधारित था, जिसने साहित्य के क्षेत्र में उन्हें एक विशेष पहचान दिलाई। इसके अलावा उनके संग्रहों में ‘नीम के फूल’, ‘चार मोती बेआब’, ‘पेपरवेट’, ‘रिश्ता और अन्य कहानियां’, ‘शहर-दर-शहर’, ‘हम प्यार कर लें’, ‘जगत्तारनी’ एवं अन्य कहानियां, ‘वल्द’, ‘रोजी’ और ‘यह देह किसकी है?’ आदि प्रमुख हैं। इसके अलावा, ‘लोग’, ‘चिडियाघर’, ‘दो’, ‘इंद्र सुनें’, ‘दावेदार’, ‘तीसरी सत्ता’, ‘यथा प्रस्तावित’, ‘परिशिष्ट’, ‘असलाह’, ‘अंर्तध्वंस’ आदि प्रमुख उपन्यास हैं। गिरिराज किशोर को 2007 में साहित्य और शिक्षा के लिए ‘पद्मश्री’ (Padma Shri) पुरस्कार से भी नवाज़ा गया था।